Monday 16 June 2014

तू मेरी मजबूरी है

रात दोपहरी में,
सोचे सोचे भूले हैं,
हम अपना नाम,
यूँ ही, बोले बोले भूले हैं,
हम सबका काम |

रोज़ सोने के पहले,
बातें भरती,
बहकी बहकी शाम,
मेरी आँखों की,
रौशनी भुलाती यूँ,
सोने सोने सपने दिखाती यूँ,
तू मेरी मजबूरी है |

तेरे कजरी की डिबिया से,
अपने ही नैनो में लिखा तेरा नाम,
चन्दा की सूरत से,
मिलाते मिलाते,
हमने रखा था,
अपने ही सपनो का नाम |

रोज़ सोने के पहले,
यादें सारी खोई थी हमने कहीं,
रोज़ सोचे सोचे,
हम भी खोए,
यादें तेरी न भूले और रोये,
तू मेरी मजबूरी है ||

~

SaलिL

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